Monday, 3 June 2019

दर्द - कवि का श्रृंगार





मेरी जीत दर्द है 
मेरा इलाज दर्द है 
मेरी हार दर्द है 
मेरा मिज़ाज दर्द है 

दर्द क्यों ज़रूरी है 
मेरी कलम ये जानती 
मेरा फ़साना और है 
मेरा बहाना और है 

मेरे यहाँ है दर्द भी 
इन पन्नो में बिक रहे 
मेरे ख़ुशी से जीने की 
काफी है वजह यही

ये दर्द भी है मोल का 
उसे मै क्या जुदा करू 
जो दर्द ने सिखाया है 
शुक्राना क्या अदा करू 

ये दर्द ही है दीन भी 
मेरी वही है जात भी 
मैं दर्द से ही खुश रहा 
कुछ ऐसी भी है बात जी 

मैं कविताएं कहता हूँ 
कविताओं की बात है 
हर मिज़ाज हर किसी में नहीं 
पर दर्द सबके पास है 

ये दर्द का बाजार है 
यहाँ दर्द ही औज़ार है 
तो दर्द क्यों है बिक रहा 
क्यों पूछने की बात है 


क्या वजह है दर्द को 
मैं सीने में दबा रखू
जो दर्द मेरे साथ है 
तुम्हे पता मेरा वजूद  

मेरी जीत दर्द है 
मेरा इलाज दर्द है 
मेरी हार दर्द है 
मेरा मिज़ाज दर्द है 


~


भावना दुबे